कांग्रेस हाईकमान के बीते रोज प्रदेश कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव करने के बाद लगने लगा था की अब प्रदेश कांग्रेस में कई दिनों से मच रहे सियासी घमासान का शायद अंत होने को है। मगर ये क्या, कि अब यह नए रूप में सामने आने लगा है।
आलाकमान के प्रदेश कांग्रेस में किये गए बदलाव के साथ पहले भीतरी तौर पर दिखायी देती गुटबाजी अब सतह पर दिखाई देने लगी है। हाईकमान द्वारा पहले पंजाब और फिर उत्तराखंड में अपनाये गए इस नए फार्मूले ने पंजाब में भले हि पार्टी को बड़ी राहत दी हो मगर यही फार्मूला उत्तराखंड कांग्रेस के गले की हड्डी बनने लगा है।हालिया बदलाव से पार्टी के भीतर असंतोष सतह पर दिखने भी लगा है अगर पार्टी जल्द हि इस संकट पर विजय पाने में असफल साबित होती है तो इसका नुकसान उसे आने वाले 2022 के चुनाव में उठाना पड़ सकता है।
यूँ तो बदलाव किसी भी पार्टी में अपेक्षित होते हैं मगर पांच अध्यक्षों के फार्मूले को लेकर असंतोष की स्थिति ज्यादा दिखाई देने लगी है। एक छोटे से राज्य में एक अध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्ष के कांग्रेस के फार्मूले ने पार्टी कार्यकर्ता समेत सभी को अचरज में डाल दिया है। उत्तराखंड कांग्रेस में विभिन्न ओहदों पर सूची जारी होने के बाद चेहरे पर सियासत शुरू हो गई। पार्टी का एक गुट जहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव में जाने की बात कह रहा है, वहीं दूसरा गुट इसका विरोध कर रहा है। अभी एक दिन पहले हि नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के इस मामले में अलग-अलग बयान सामने आए।
धारचूला विधायक हरीश धामी के नयी टीम की घोषणा होते ही नाराजगी जताने के बाद बीते रोज पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता नवप्रभात ने मेनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने से इन्कार कर दिया। जहाँ नवप्रभात संगठन में हालिया बदलाव से नाखुश दिखे तो वहीँ पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भी बदलाव के इस फार्मूले से सहमत होते नहीं दिख रहे हैं।
हरीश रावत का सोशल मीडिया के जरिए नेताओं को बयानबाज़ी से बचने की सलाह व नसीहत देना और कहना कि “हम सबको मिलकर 2022 में कांग्रेस की विजय के लिए काम करना है। राज्य में केवल अध्यक्ष पद पर चेहरा बदला है, नेतृत्व आज भी वही पुराना है। इसलिये अपने पोस्टरों में, अपने व्यवहार में सभी नेतागणों को महत्त्व दें” वाला बयान साबित करता है की प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है।
गौरतलब है कि प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बहुत काम वक्त बचा है ऐसे में गुट विशेष के वर्चस्व की लड़ाई को अगर पार्टी रोकने में सफल न हुई तो यह कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है। कांग्रेस में फूट सत्तारूढ़ भाजपा के लिए तो बड़ा अवसर साबित हो ही सकती है, साथ में यह लड़ाई नए नए कदम जमाने जा रही आम आदमी पार्टी के लिए भी मुफीद होगी।