फिर जगी आस, ठांगधार-थौलधार मोटर मार्ग को केन्द्र सरकार की स्वीकृति

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सड़कें विकास की निशानी होती है। रोटी कपडा और मकान के बाद सड़क ही मनुष्य के जीवन में महत्व रखती है। सड़कों के बिना जीवन की कल्पना करें तो इसका महत्व अपने आप पता चल जाता है। उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो यहां सड़कों के निर्माण को लेकर भी आंदोलन करने पड़ते हैं। आन्दोलनों के सहारे यदि सड़क निर्माण की घोषणा होती भी है तो उस पर फिर वन-विभाग की मंजूरी मिलने में लंबा समय लग जाता है।

ऐसा ही एक मामला धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के थौलधार-ठांगधार मोटर मार्ग का भी है। जिसकी मंजूरी के लिए ग्रामीणों ने 14 साल संघर्ष किया और अब वन विभाग की मंजूरी के साथ केन्द्र सरकार द्वारा इसके लिए सैद्धांतिक स्वीकृति दे दी है। केन्द्र सरकार की स्वीकृति के बाद ग्रामीणों में सड़क निर्माण की उम्मीद जगी है, और सरकार के फैसले पर खुशी भी जाहिर की है।

यूं तो राज्य गठन की शुरुआत से ठांगधार-थौलधार मोटर मार्ग की मांग की जाती रही है, और 2008 में आठ किमी लंबा यह मोटर मार्ग स्वीकृत भी हो गया था, लेकिन वन अधिनियम के चलते यह मार्ग अधर में लटका रहा। सरकारी उपेक्षा से त्रस्त क्षेत्र के ग्रामीणों ने 2017 में पैदल यात्रा मार्ग को श्रमदान से मरम्मत कर हल्का वाहन योग्य बना दिया था। इस पर भी वन विभाग ने आपत्ति की थी।

अब केन्द्र सरकार ने जनपद टिहरी में ढांगधार-धौलधार मोटर मार्ग के निर्माण हेतु 2.9925 हे. वन भूमि का गैर वानिकी कार्यों हेतु लोक निर्माण विभाग को प्रत्यावेदन किये जाने की सैद्धांतिक स्वीकृति निम्नलिखित शर्तों पर प्रदान की है। वन भूमि की विधिक परिस्थिति नहीं बदली जाएगी। परियोजना के लिए आवश्यक गैर वन-भूमि प्रयोक्ता अभिकरण को सौंपे जाने के बाद ही वन भूमि सौंपी जाएगी।

प्रतिपूरक वनिकरण-
क- वन विभाग द्वारा प्रयोक्ता अभिकरण की लागत पर 5.98 हे. सिविल सोयम भूमि ग्राम कोट, टिहरी गढ़वाल खसरा संख्या 1234,2561,2576,2583 तथा 2596 में प्रतिपूरक वनीकरण किया जाएगा। जहां तक व्यावहारिक हो, स्थानीय स्वदेशी प्रजातियों को लगाया जाए तथा प्रजातियों की एकल प्लांटेशन से बचें।
ख- गैर वानिकी भूमि को राज्य वन विभाग के पक्ष में हस्तांतरित एवं रूपांतरित किया जाएगा। भूमि के हस्तांतरण, नामान्तरण एवं नोटिफिकेशन करने के पश्चात ही विधिवत स्वीकृति प्रदान की जाएगी। एफ.सी.ए. 1980 की गाइडलाइन के para 2.4 (i) के अनुसार ऐसे क्षेत्र जो वन विभाग के स्वामित्व से बाहर हैं एवं प्रतिपूरक वनीकरण हेतु विभिन्न प्रस्तावों में प्रस्तुत किए गए हैं को वन विभाग के पक्ष में हस्तांतरण एवं नामांतरण करने के पश्चात भारतीय वन अधिनियम 1927 के अंतर्गत विधिवत स्वीकृति से पूर्व आरक्षित/संरक्षित वन घोषित किया जाना आवश्यक है।
ग- वन मंडल अधिकारी द्वारा अतिरिक्त प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत किया जाएगा की उक्त सी ए क्षेत्र पर पूर्व में किसी भी अन्य योजना के तहत वृक्षारोपण कार्य नहीं किया गया है।
घ- रोपण के समय कम से कम 50 प्रतिशत ओक प्रजाति के वृक्षों का वृक्षारोपण किया जाएगा। केन्द्र सरकार की पूर्वानुमति के बिना प्रस्ताव का ले-आउट प्लान नहीं बदला जाएगा। वन भूमि पर कोई भी श्रमिक शिविर स्थापित नहीं किया जाएगा।

परियोजना कार्य के निष्पादन के लिए निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए वन क्षेत्र के अंदर कोई अतिरिक्त नया मार्ग नहीं बनाया जाएगा। वन भूमि का उपयोग परियोजना के प्रस्ताव में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के अतिरिक्त अन्य किसी प्रयोजन हेतु नहीं किया जाएगा।

वन विभाग मोटर-मार्ग के निर्माण हेतु कई अन्य शर्तें भी ऱखी हैं। इन शर्तों के पालन के साथ यदि यह मार्ग बन जाता है तो टिहरी बांध झील, डोबरा-चांठी पुल, प्रतापनगर ब्लाक, चमियाला क्षेत्र ठांगधार में चम्बा-मसूरी मोटर मार्ग से जुड़कर जहां आम जनता के लिए मसूरी देहरादून के लिए सुगम हो जाएगा। वहीं एक बहुत बड़ा क्षेत्र पर्यटन हब के रूप में उभर जाएगा।


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