क्या 72 सड़कें राज्य के हाथ से फिसल जाएँगी? किसकी लापरवाही ? शासन या प्रशासन ?

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विषम भूगोल और 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन भूमि हस्तांतरण बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। वन हस्तांतरण न होने के कारण काफी समय से सड़कें अधर में लटकी हैं। वहीँ ख़बर है की दिसंबर तक कार्य शुरू न होने की दशा में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत स्वीकृत 72 सड़कें राज्य के हाथ से फिसल सकती हैं।
 देखिये किन जिलों में, कितनी सड़कों के छिनने का है खतरा….
अल्मोड़ा-13, बागेश्वर-09, उत्तरकाशी-08, नैनीताल-07,,पिथौरागढ़-07, चमोली-07, चम्पावत-06, रुद्रप्रयाग-06,टिहरी-04, पौड़ी-04, देहरादून-01
प्रत्येक वर्ष केन्द्र सरकार नागरिकों के बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने एवं सार्वजनिक ढांचे को मजबूत करने के लिए भारी मात्रा में संसाधन जुटाती रही है, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही व राजनीतिक प्रभाव कहीं न कहीं इन कार्यों पर असर डालता है। इस परिपेक्षय में अगर उत्तराखण्ड की बात की जाए तो यहां नौकरशाही की मनमानी पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। प्रदेश में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो, नौकरशाही पर कोई भी सरकार लगाम नहीं कस पाई है। परिवहन के रूप में सड़क देश और राज्य  के आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढ़ाचा होता हैवहीँ अधिकारियों की सुस्ती के काऱण आज प्रदेश के हाथ से 72 सड़कें छिनने का खतरा मंडराने लगा है, और वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में देरी हो रही है। खुद विभागीय सचिव कार्यों में हो रही देरी का कारण जनपद स्तर के अधिकारियों में समन्वय न होना स्वीकार चुके हैं। साथ ही वर्षों से इन मामलों के निस्तारण न होने पर नाराज़गी जता चुके हैं।
अपर सचिव एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (पीएमजीएसवाई-उत्तराखंड) उदयराज सिंह कहते हैं —“राज्य में पीएमजीएसवाई की सड़कों के लिए वन भूमि हस्तांतरण  की प्रक्रिया तेज करने के मद्देनज़र कदम उठाये जा रहे हैं। प्रयास ये है की माहभर के भीतर लंबित प्रकरणों का निस्तारण कर लिया जाए”
अब सरकार को ही इन निर्माण कार्यों में सामने आ रही दिक्कतें को दूर करने की पहल करनी होगी और अधिकारियों की ज़िम्मेदारी तय करनी होगी।
वहीँ शासन शासन ने राष्ट्रीय राजमार्ग 74 और राष्ट्रीय राजमार्ग 87 (अब एनएच-109) के निर्माण कार्यो में हो रही देरी पर चिंता जताई है। जनपद स्तर पर विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण ऐसा हो रहा है। शासन ने आयुक्त नैनीताल को पत्र लिख कर राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए संबंधित विभागों के साथ बैठक बुलाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही लंबित प्रकरणों का निस्तारण करते हुए इसकी सूचना शासन को उपलब्ध कराने को कहा है।

सचिव लोक निर्माण विभाग आरके सुधांशु ने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण द्वार प्रदेश में किए जा रहे सड़क निर्माण के कार्यो की समीक्षा की। वे कहते हैं कि— “एनएचएआइ के कार्य वर्षो पूर्व स्वीकृत किए जा चुके हैं। केंद्र सरकार भी समय-समय पर इसकी समीक्षा कर रही है। इनका अभी तक निर्माण न होना चिंताजनक है”इस दौरान उन्होंने हरिद्वार से काशीपुर, रुद्रपुर व सितारजंग होकर बरेली जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-74 के निर्माण कार्यो में आ रही दिक्कतों के संबंध में जानकारी ली।

बताया गया कि जमीन हस्तांतरण और बिजली के पोल शिफ्ट करने के कार्य लंबित चल रहे हैं। दिल्ली से नैनीताल, रानीखेत, कौसानी से होते हुए अल्मोड़ा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-109 के संबंध में की गई समीक्षा के दौरान बताया गया कि वन भूमि हस्तांतरण, वृक्षों की कटाई और भूमि अधिग्रहण के प्रकरण लंबित हैं। सचिव लोक निर्माण विभाग ने कहा समन्वय की कमी के कारण परियोजनाओं का कार्य बाधित हो रहा है। ऐसे में जल्द लंबित प्रकरणों का निस्तारण कर निर्माण कार्यो में तेजी लाई जाए। ग़ौरतलब है कि पहाड़ वासियों की राह आसान बनाने की तैयारी में जुटी सरकार के मातहत ही सरकार के कार्यों पर बट्टा लगाते दिखाई दे रहें हैं । बता दें की चीन और नेपाल के साथ भारत के रिश्तों में तल्खी के बीच उत्तराखंड से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा की संवेदनशीलता बढ़ गई है। उत्तराखंड चीन और नेपाल के साथ सैकडों किमी की सीमा साझा करता है। चिंता की बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते उत्तराखंड के गांवों में पलायन भी तेजी से बढ़ रहा है। अगर पहाडों मे सड़कों का जाल न बिछाया गया तो आने वाले समय में हमें सड़क से जुडी न जाने कितनी समस्याओं से गुज़ारना पड़ेगा। आज जरुरत इस बात कि है कि सीमांत क्षेत्रों में सड़क सेवाओं को बेहतर बनाया जाए और रोड नेटवर्क को मजबूत किया जाए। 


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6 thoughts on “क्या 72 सड़कें राज्य के हाथ से फिसल जाएँगी? किसकी लापरवाही ? शासन या प्रशासन ?

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