हिमालयी चुनौतियों से लड़ते, विकास के रास्ते बनाता उत्तराखंड का 23वें वर्ष में प्रवेश

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उत्तराखंड ने 09 नवंबर को अपना स्थापना के 22 साल पूरे कर लिए हैं। आज उत्तराखंड राज्य का स्थापना दिवस है। पूरे प्रदेश में राज्य स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है। राज्य स्थापना दिवस के मौके पर अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जिसमें कई नेताओं और मंत्रियों ने हिस्सा लिया. इस दौरान राज्य के अलग-अलग जिलों में राज्य आंदोलनकारियों को भी सम्मानित किया गया। राज्य अब अपने 23वें साल में प्रवेश कर गया है।

22 सालों में उत्तराखंड की कई उपलब्धियां हैं, लेकिन बहुत कुछ और भी ऐसा है जो अभी पाना है। राज्य गठन से लेकर अब तक उत्तराखंड ने कई उतार चढाव का सामना  किया है, जहाँ 22 वर्षों की यात्रा में उपलब्धियों के कई मुकाम हासिल किए तो वहीं दर्जनों प्राकृतिक आपदाओं ने विकास की गति को प्रभावित भी किया। 2013 में केदारनाथ में आयी आपदा ने तो राज्य की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने में कोई कसार नहीं छोड़ी जिस कारण तत्कालीन केंद्र सरकार ने 7 हजार करोड़ रुपये से अधिक का विशेष आर्थिक पैकेज दिया। इन 22 सालों में राज्य ने काफी कुछ पाया है तो कई त्रासदियों का सामना भी किया। राज्य के सामने आज भी चुनौतियां मुँह बाएं खड़ी हैं जिनसे पार पाने में राज्य सरकार जी तोड़ कोशिशों में जुटी हैं।

80 प्रतिशत से अधिक पर्वतीय भूभाग वाला यह क्षेत्र अवस्थापना विकास और मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। पर्वतीय जिले मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रोजाना कई लोग दम तोड़ रहे हैं। राज्य बने हुए 22 वर्ष बीतने पर भी पलायन की समस्या आज भी जस की तस मौजूद हैं। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के लिए पृथक राज्य की मांग की गई थी पर स्थिति यह है कि राज्य का युवा रोजगार की मांग को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। उत्तराखंड परीक्षा घोटाले ने साबित कर दिया कि सपनों के राज्य में माफिया दीमक की तरह कितने अंदर तक घुस चुका है। प्रदेश में एक सख्त भू कानून लागू करने की आवश्यकता है। एनडी तिवारी सरकार के दौरान उत्तराखंड में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए सिडकुल की स्थापना की गई थी। औद्योगिक विकास की वजह से उत्तराखंड देश के औद्योगिक मानचित्र पर स्थापित हो पाया। हालांकि, तिवारी सरकार के बाद औद्योगिक विकास की रफ्तार अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ पाई।

उत्तराखंड बनने के बाद  केंद्र और राज्य के सहयोग से बनी सड़कों की वजह से यातायात सुगम हुआ है। सड़कों के विकास में तेजी आई है तो दूरदराज के गांवों तक भी सड़क पहुंची। वर्तमान में तीस हजार किमी सड़कें बन चुकी हैं। केंद्र सरकार के ऑलवेदर रोड प्रोजेक्ट की वजह से चारधाम रूट की सड़कों का कायाकल्प हुआ है। इससे चारधाम यात्रा में श्रदालुओं के साथ स्थानीय लोगों के आवागमन में सफर भी आसान हुआ और इस  वर्ष तो यात्रा के पिछले सारे रिकॉर्ड टूटे।उत्तराखंड का हर गांव और हर घर बिजली से रोशन है। बिजली कनेक्शनों की संख्या 27 लाख के पार पहुंच गई है।दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत पावर सप्लाई सिस्टम मजबूत हुआ है। ऊर्जा निगम के दावों के मुताबिक, अब हर घर में  बिजली कनेक्शन है।

इसे राज्य का दुर्भाग्य कहें या क्या, की जैसे ही राज्य प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है, मानो इसे किसी की नज़र लग जाती है। कभी प्राकृतिक आपदा और अभी कोविड-19 महामारी के दौरान कोरोना से राज्य की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ। राज्य की जीडीपी शून्य से नीचे चली गई। राज्य अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर्यटन कारोबार की कमर टूट गई। हालांकि महामारी से उत्तराखंड अब उबर चुका है। उत्तर प्रदेश से पृथक कर बनाए गए उत्तराखंड राज्य ने 22 वर्ष की अवधि में कई मोर्चों पर सफलता की कहानी लिखी है। विशेषकर आर्थिकी में राज्य ने लंबी छलांग लगाई। राज्य स्थापना के पहले वर्ष में मात्र साढ़े चौदह हजार करोड़ की कुल अर्थव्यवस्था अब ढाई लाख करोड़ के बड़े आकार को लांघ चुकी है।राज्य सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में उत्तराखंड राष्ट्रीय औसत से कहीं आगे तो है ही, कई बड़े राज्यों को भी चुनौती दे रहा है। उत्तराखंड जब बना तो प्रति व्यक्ति आय 13,762 रुपये थी, जो अब 1.96 लाख रुपये के पार पहुंच गई है। विशेष दर्जे और केंद्र से मिलने वाली अधिक सहायता प्रदेश को ज्वलंत समस्याओं से जूझने और नई राह तैयार करने में सहायक सिद्ध हो रही है।


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