देहरादून के सागरताल में बलभद्र खलंगा विकास समिति द्वारा आयोजित ’50वां खलंगा मेला’ ऐतिहासिक वीरता और बलिदान का प्रतीक बन गया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस विशेष अवसर पर प्रतिभाग करते हुए आयोजन समिति को ₹5 लाख की सहायता राशि देने की घोषणा की। साथ ही ’50वां खलंगा मेला स्मारिका’ का विमोचन कर इस आयोजन की गरिमा बढ़ाई।
सीएम धामी ने खलंगा मेले को पूर्वजों की अदम्य साहस और वीरता का स्मरण बताते हुए सेनानायक कुंवर बलभद्र थापा और उनके वीर साथियों को नमन किया। उन्होंने 1814 के एंग्लो-गोरखा युद्ध की वीरगाथा का उल्लेख करते हुए कहा कि खलंगा की वीर भूमि पर कुंवर बलभद्र थापा और उनके सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। अपनी कुशल रणनीति और साहस से उन्होंने ब्रिटिश सेना को धूल चटाई, जिससे यह युद्ध गोरखा योद्धाओं के देशप्रेम और शौर्य का अमर प्रतीक बन गया।
मुख्यमंत्री ने कहा, “खलंगा की गाथा हमारे पूर्वजों के अद्वितीय साहस और गौरवशाली विरासत को उजागर करती है। यह मेला केवल सांस्कृतिक परंपराओं का उत्सव नहीं, बल्कि नई पीढ़ी को गोरखा समाज की समृद्ध परंपराओं और उनके वीर पूर्वजों के बलिदान की प्रेरणा देता है।” हमारी सरकार प्रदेश में आयोजित होने वाले मेलों और सांस्कृतिक आयोजनों के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इन मेलों के माध्यम से हमारी लोक संस्कृति, कला, और परंपराएं सजीव रहती हैं।
खलंगा युद्ध स्मारक का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में होना राज्य की ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति सम्मान को दर्शाता है। सीएम धामी ने आश्वासन दिया कि गोरखा समाज के उत्थान और उनके कल्याण के लिए राज्य सरकार निरंतर प्रयासरत रहेगी। उन्होंने कहा, “ऐसे आयोजन हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने और उनके मन में देशभक्ति का भाव जागृत करने में सहायक हैं।”
यह आयोजन गोरखा समाज की वीरता और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रमाण है, जो देशभक्ति और परंपराओं को संजोने की प्रेरणा देता रहेगा।
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