“अब न दौड़, न चिंता: पेंशनरों के लिए उत्तराखंड सरकार ला रही है ऑनलाइन समाधान”

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देहरादून/ रिटायरमेंट के बाद जीवन को सुकूनभरा मानने वाले हजारों पेंशनभोगियों के लिए वर्षों से पेन्शन मिलना ही एक संघर्ष रहा है। दस्तावेज़ों की फाइलों में उलझे केस, दफ्तरों के चक्कर और अंतहीन इंतज़ार—ये सब उन बुज़ुर्गों की नियति बन चुकी थी जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के सबसे कीमती साल सरकार की सेवा में लगाए। लेकिन अब सरकार इस पीड़ा को समझते हुए एक बड़ा और संवेदनशील कदम उठाने जा रही है।

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर राज्य सरकार ने एक ऑनलाइन पेंशन पोर्टल विकसित करने का निर्णय लिया है, जो पेंशन से जुड़ी शिकायतों और प्रक्रियाओं को डिजिटल, पारदर्शी और समयबद्ध बनाएगा।

अब हर पेंशनभोगी को मिलेगा ‘Status Update’

इस पोर्टल के ज़रिए अब रिटायर हो चुके कर्मचारी—चाहे वो शिक्षा विभाग से हों या किसी अन्य विभाग से—अपनी शिकायतें ऑनलाइन दर्ज कर सकेंगे और रीयल टाइम में जान सकेंगे कि उनकी फाइल किस स्थिति में है।

आईटीडीए (ITDA) और वित्त विभाग इस पोर्टल के विकास में संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं। इस प्रयास से प्रदेश के करीब 1.5 लाख पेंशनरों को एक केंद्रीकृत सिस्टम के तहत सुविधा मिलने की उम्मीद है।

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वर्षों तक लंबित रही फाइलें

शिक्षा विभाग में तो हालात ऐसे रहे हैं कि 8 साल तक पेंशन की फाइलें लंबित रहीं। जनवरी 2025 में राइट टू सर्विस कमीशन ने ऐसे 150 से ज्यादा मामलों की सूची शिक्षा विभाग को भेजी थी। सरकार अब ऐसी लापरवाहियों पर विराम लगाना चाहती है, और यह पोर्टल उसी दिशा में एक ठोस कदम है।

“बुजुर्गों की पीड़ा को समझने की ज़रूरत थी”

कई बार उम्रदराज पेंशनभोगी दफ्तरों के चक्कर नहीं काट पाते, तो कोई रिश्तेदार या बेटा-बेटी उनकी फाइलें उठाकर सरकारी दफ्तरों के गलियारों में भटकते हैं। मानसिक तनाव, वित्तीय असुरक्षा और अपमान की अनुभूति – यही था रिटायरमेंट के बाद का सच।

अब इस पोर्टल से उन्हें स्वाभिमान और सुविधा दोनों मिलेंगे।

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ने शुरू किया तकनीकी कार्य

ITDA की निदेशक नितिका खंडेलवाल ने जानकारी दी कि पोर्टल के डिज़ाइन और तकनीकी पक्ष पर कार्य पहले से शुरू हो चुका है। अब अगला चरण वित्त विभाग के साथ मिलकर इसका Implementation Plan तैयार करना है।

बुज़ुर्गों के चेहरे पर लौटेगी मुस्कान

यह पोर्टल सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि उन बुजुर्गों के लिए एक सम्मानजनक और सशक्त माध्यम होगा, जो जीवन की सांझ में सरकार से सिर्फ थोड़ी सहजता और सम्मान की उम्मीद रखते हैं।

“सरकारी सेवा दी है, अब सम्मान से जीने का हक़ भी दीजिए।”


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