वहीँ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी कहते हैं कि हमारी एक कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट क्लिनिकल ट्रायल के तीसरे चरण में है। उन्होंने आगे कहा, ‘हम पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि इस साल के अंत तक वैक्सीन बनकर तैयार हो जाएगी।’
सूत्रों के अनुसार यह वैक्सीन सीरम इंस्टिट्यूट की होगी। कंपनी ने एस्ट्राजेनेका (Astra Zeneca agreement with Serum Institute) नामक कंपनी के साथ एक एक्सक्लूसिव अग्रीमेंट कर अधिकार खरीदे हैं ताकि इसे भारत और 92 अन्य देशों में बेचा जा सके। इसके बदले में सीरम इंस्टिट्यूट कंपनी को रॉयल्टी फीस देगी।
73 दिन में दिन में आएगी भारत की कोरोना वैक्सीन, टीके “मुफ्त” राष्ट्रीय टीकाकरण के तहत लगेंगे !
‘बिजनस टुडे’ में छपी एक खबर के अनुसार भारत की पहली कोरोना वैक्सीन 73 दिन में आ जाएगी, और यह वैक्सीन होगी “कोविशील्ड ” पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट में इस वैक्सीन पर काम चल रहा है। और इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार इन टीकों को “मुफ्त” में राष्ट्रीय टीकाकरण के तहत लगाएगी।
सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं —, ‘सरकार ने हमें एक विशेष निर्माण प्राथमिकता लाइसेंस दिया है और ट्रायल प्रोटोकॉल की प्रक्रिया को तेज कर दिया गया है जिससे 58 दिनों में ट्रायल पूरा किया जा सके। इसके तहत फाइनल फेज (तीसरा चरण) में ट्रायल का पहला डोज आज से दिया गया है। दूसरा डोज 29 दिनों के बाद दिया जाएगा। फाइनल ट्रायल डेटा दूसरा डोज दिए जाने के 15 दिनों के बाद आएगा। इस अवधि के बाद हम कोविशील्ड को बाजार में लाने की योजना बना रहे हैं।’
पहले, तीसरे चरण के ट्रायल में कम से कम 7-8 महीने लगने की बात कही जा रही थी। 17 सेंटरों पर 1600 लोगों के बीच यह ट्रायल 22 अगस्त से शुरू हुआ है। हर सेंटर पर करीब 100 वालंटिअर हैं।
केंद्र सरकार ने पहले ही सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) को संकेत दे दिए हैं कि वह उससे सीधे वैक्सीन खरीदेगी और भारतीयों को फ्री में टीका लगवाने की योजना पर काम चल रहा है। केंद्र ने अगले साल जून तक सीरम इंस्टिट्यूट से 130 करोड़ भारतीयों के लिए 68 करोड़ डोज मांगे हैं।
बता दें कि सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) दुनिया की सबसे बड़ी टीका निर्माता कंपनी है। यह हर साल 1.5 अरब वैक्सीन डोज तैयार करती है जिनमें पोलियो से लेकर मीजल्स तक के टीके शामिल हैं।
अब देखने वाली बात यह है कि देश-विदेश से हर दिन नए नए दावों के साथ आ रही कोरोना वायरस का टिका बना रही कम्पनियाँ अपने दावों पर कितनी खरी साबित होती हैं यह अभी भविष्य के गर्भ में है।