मुख्यमंत्री धामी ने रचा इतिहास: उत्तराखंड में सबसे लंबे समय तक लगातार कार्यरत भाजपा मुख्यमंत्री बने, चार साल पूरे
देहरादून, 4 जुलाई 2025
उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में आज का दिन एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में दर्ज हो गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री पद पर लगातार चार साल का कार्यकाल पूरा कर राज्य में भाजपा के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान स्थापित किया है। यह उपलब्धि उनके दो कार्यकालों के सम्मिलित चार वर्षों की देन है, जिसने उन्हें उत्तराखंड ही नहीं, राष्ट्रीय राजनीति में भी एक मजबूत और प्रभावी नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर दिया है।
धामी को जुलाई 2021 में उस समय मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जब आगामी विधानसभा चुनाव में महज कुछ माह शेष थे। लेकिन धामी ने युवा नेतृत्व के तौर पर न केवल भाजपा को चुनाव जिताया, बल्कि उत्तराखंड में ‘सत्ता वापसी न हो पाने’ की राजनीतिक मान्यता को भी तोड़ा। 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद धामी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया और तब से उन्होंने निर्णायक फैसलों और सशक्त नेतृत्व से राज्य में कई ऐतिहासिक पहलें कीं।
राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित फैसले, जो बने मॉडल:
मुख्यमंत्री धामी के कार्यकाल में कई ऐसे फैसले लिए गए जिन्होंने देशभर में चर्चा बटोरी और दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण पेश किया:
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समान नागरिक संहिता (UCC):
27 जनवरी 2025 को उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बना। इस कानून के अंतर्गत अब तक दो लाख से अधिक रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं, और अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी इसकी पहल शुरू हुई है। -
नकल रोधी कानून:
फरवरी 2023 में लागू यह सख्त कानून उत्तराखंड की प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल माफिया के कुचक्र को तोड़ने में निर्णायक साबित हुआ। इसे देशभर में मॉडल ऐंटी-चीटिंग लॉ के रूप में देखा जा रहा है। -
धर्मांतरण पर सख्ती:
धामी सरकार ने धर्मांतरण रोकथाम अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू किया, जिससे गैरकानूनी धर्म परिवर्तन पर लगाम लगी। -
दंगाइयों से वसूली कानून:
सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले उपद्रवियों से बाजार भाव पर वसूली का प्रावधान करने वाला कानून 2024 में लागू किया गया, जिसने राज्य में कानून व्यवस्था को और मजबूत किया। -
गैंगस्टर एक्ट में संशोधन:
गौवध, मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी, मनी लॉन्ड्रिंग जैसे अपराधों को गैंगस्टर एक्ट के तहत लाकर अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की गई। -
आरक्षण में सुधार:
उत्तराखंड आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण बहाल किया गया और महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया।
जनहित से जुड़े अभियान और योजनाएं:
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पलायन रोकने की कोशिशें: ‘एप्पल मिशन’ और ‘कीवी मिशन’ जैसी पहलें कृषि और बागवानी में स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गईं।
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हाउस ऑफ हिमालयाज: पहाड़ी उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने का अभिनव प्रयास।
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सख्त भू-कानून व ‘लव जिहाद’ पर रुख: भूमि विवाद और सांप्रदायिक मुद्दों पर सरकार ने स्पष्ट और कठोर नीति अपनाई।
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23 हजार सरकारी भर्तियां: युवाओं को रोजगार देने के लिए व्यापक भर्ती अभियान चलाया गया।
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महासू मंदिर व मानसखंड मिशन: धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नए अध्याय जोड़े गए।
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राष्ट्रीय खेल और G-20 बैठकें: उत्तराखंड को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने वाले आयोजन सफलतापूर्वक कराए गए।
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SDG व GEP इंडेक्स में सफलता: सतत विकास लक्ष्यों (SDG) और सकल पर्यावरण उत्पाद (GEP) में शानदार प्रदर्शन कर राज्य को देशभर में अग्रणी पंक्ति में लाया गया।
शैली में सौम्यता, फैसलों में सख्ती
मुख्यमंत्री धामी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता रही है – शब्दों में शालीनता और फैसलों में दृढ़ता। चाहे सिल्क्यारा टनल संकट जैसा आपातकाल रहा हो या कोई प्रशासनिक चुनौती, धामी ने हर मोर्चे पर निर्णय क्षमता का उत्कृष्ट परिचय दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार उत्तराखंड आकर उनके कार्यों की सराहना कर चुके हैं और यह स्पष्ट संकेत दिया है कि “धामी जैसे नेतृत्वकर्ता को पूरा भरोसा और सहयोग है।”
भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल
(तुलनात्मक संदर्भ)
मुख्यमंत्री | कार्यकाल |
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नित्यानंद स्वामी | 9.11.2000 – 29.10.2001 |
भगत सिंह कोश्यारी | 30.10.2001 – 1.03.2002 |
बीसी खंडूड़ी (2 बार) | 7.03.2007 – 26.06.2009, 11.09.2011 – 13.03.2012 |
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ | 27.06.2009 – 10.09.2011 |
त्रिवेंद्र सिंह रावत | 18.03.2017 – 10.03.2021 |
तीरथ सिंह रावत | 10.03.2021 – 3.07.2021 |
पुष्कर सिंह धामी | 4.07.2021 – अब तक (लगातार) |
चार वर्षों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रशासनिक दक्षता, जनविश्वास और राजनीतिक स्थिरता का एक दुर्लभ संयोजन प्रस्तुत किया है। उनके निर्णयों की गूंज अब उत्तराखंड की सीमाओं से निकलकर राष्ट्रीय मंच पर सुनाई दे रही है।
उत्तराखंड के इतिहास में आज का दिन एक नई राजनीतिक परंपरा की शुरुआत भी है — लंबे और स्थिर नेतृत्व की।